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मंगलाचरण

गरीब नमो नमो सत् पुरूष कुं, नमस्कार गुरु कीन्ही।
सुरनर मुनिजन साधवा, संतों सर्वस दीन्ही।।
सतगुरु साहिब संत सब डण्डौतम् प्रणाम।
आगे पीछै मध्य हुए, तिन कुं जा कुरबान।।
नराकार निरविषं, काल जाल भय भंजनं।
निर्लेपं निज निर्गुणं, अकल अनूप बेसुन्न धुनं।।

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नित्यनियम

अनाहद मन्त्र सुख सलाहद मन्त्र, अजोख मन्त्र,
बेसुन मन्त्र निर्बान मन्त्र थीर है।।
आदि मन्त्र युगादि मन्त्र, अचल अभंगी मन्त्र,
सदा सत्संगी मन्त्र, ल्यौलीन मन्त्र गहर गम्भीर है
सोऽहं सुभान मन्त्र, अगम अनुराग मन्त्र,
निर्भय अडोल मन्त्र, निर्गुण निर्बन्ध मन्त्र, निश्चल मन्त्र नेक है।।

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असुर निकंदन रमैनी

सतपुरुष समरथ ओंकारा, अदली पुरुष कबीर हमारा।
आदि जुगादि दया के सागर, काल कर्म के मौचन आगर।।
दुःख भंजन दरवेश दयाला,असुर निकन्दन कर पैमाला।
आव खाक पावक और पौना, गगन सुन्न दरयाई दौना।।
धर्मराय दरबानी चेरा, सुर असुरों का करै निबेरा।
सत का राज धर्मराय करहीं, अपना किया सभैडण्ड भरहीं।।

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रक्षामंत्र

सतगुरु शरण शरणाई, शरण गहे कछु भय।
नहीं व्यापै, काल जाल भय मिट जाहीं।।
रोग शोग छल छिद्र न व्यापै, सन्मुख ना ठहराई।
जहर अग्नि तन निकट न आवै, दूरी जात रंगाई।।
बीर बेताल बाण ना लागै, जम के कोट ढहाई।
अठानवे पुण्य मूठ ना लागै, उल्ट ताही धरखाई।।

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संध्या आरती

पहली आरती हरि दरबारे, तेजपु´ज जहां प्राण उधारे।
पाती पंच पौहप कर पूजा, देव निंरजन और न दूजा।।
खण्ड खण्ड में आरती गाजै, सकलमयी हरि जोति विराजै।
शान्ति सरोवर म´जन कीजै, जत की धोति तन पर लीजै।।
ग्यान अंगोछा मैल न राखै, धर्म जनेऊ सतमुख भाषै।
दया भाव तिलक मस्तक दीजै, प्रेम भक्ति का अचमन लीजै।।

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