क्या ब्रह्म का जन्म नहीं है तथा सर्व पाप नष्ट कर देता है ?

प्रश्न- गीता अध्याय 10 श्लोक 2 में तथा 3 में कहा है कि मेरी उत्पत्ति को कोई नहीं जानता। जो मुझे अनादि अजन्मा तत्व से जानता है वह सर्व पापों से मुक्त हो जाता है। इससे स्पष्ट है कि ब्रह्म का जन्म नहीं है तथा सर्व पाप नष्ट कर देता है।

 

प्रश्न- गीता अध्याय 10 श्लोक 2 में तथा 3 में कहा है कि मेरी उत्पत्ति को कोई नहीं जानता। जो मुझे अनादि अजन्मा तत्व से जानता है वह सर्व पापों से मुक्त हो जाता है। इससे स्पष्ट है कि ब्रह्म का जन्म नहीं है तथा सर्व पाप नष्ट कर देता है।

उत्तर – गीता अध्याय 10 श्लोक 2 को पुनर् पढ़ें जिसमें कहा है कि मेरी उत्पत्ति को न देवता (ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव आदि) तथा न महर्षि जानते हैं क्योंकि वे सर्व मुझ से उत्पन्न हुए हैं।

इस श्लोक से स्वतः सिद्ध है कि गीता ज्ञान दाता प्रभु की उत्पत्ति अर्थात् जन्म तो हुआ है परन्तु काल (ब्रह्म) से उत्पन्न देवता तथा ऋषिजन नहीं जानते, क्योंकि वे काल से उत्पन्न हुए हैं। जैसे पिता के जन्म के विषय में बच्चे नहीं जानते, परन्तु पिता का पिता अर्थात् दादा जी ही बताता है। पूर्ण परमात्मा ने स्वयं काल लोक में प्रकट होकर ब्रह्म की उत्पत्ति के विषय में बताया है। कृपया पढ़ें सृष्टी रचना इसी पुस्तक ‘‘ज्ञान गंगा’‘ के पृष्ठ 20-65 तक।

गीता अध्याय 10 श्लोक 3 का अनुवाद गलत किया है। जैसे गीता अध्याय 2 श्लोक 12 तथा अध्याय 4 श्लोक 5 में अपने आप को नाशवान तथा जन्म-मृत्यु को बार-बार प्राप्त होने वाला कहा है तथा अध्याय 2 श्लोक 17 तथा अध्याय 8 श्लोक 3, 8 से 10 तथा 20 व अध्याय 15 श्लोक 4, 16.17 में किसी अन्य अविनाशी अनादि परमात्मा के विषय में कहा है।

इसलिए गीता अध्याय 10 श्लोक 3 में कहा है कि जो मनुष्यों में विद्वान अर्थात् तत्वदर्शी संत मुझे तथा उस अनादि, वास्तव में जन्म रहित, सर्व लोकों के महेश्वर अर्थात् परमेश्वर को तत्व से जानता है वह तत्वदर्शी संत सत ज्ञान उच्चारण करता है, जिससे सत साधना करके पाप से मुक्त हो जाता है। इसी का प्रमाण गीता अध्याय 4 श्लोक 34 में भी है। कृपया पढ़ें गीता अध्याय 10 श्लोक 3 का यथार्थ अनुवाद –

अध्याय 10 का श्लोक 2

न, मे, विदुः, सुरगणाः, प्रभवम्, न, महर्षयः,

 

अहम्, आदिः, हि, देवानाम्, महर्षीणाम्, च, सर्वशः।।

 

अनुवाद: (मे) मेरी (प्रभवम्) उत्पतिको (न) न (सुरगणाः) देवतालोग जानते हैं और (न) न (महर्षयः) महर्षिजन ही (विदुः) जानते हैं, (हि) क्योंकि (अहम्) मैं (सर्वशः) सब प्रकारसे (देवानाम्) देवताओंका (च) और (महर्षीणाम्) महर्षियोंका भी (आदिः) आदि अर्थात् उत्पत्ति का कारण हूँ।

अध्याय 10 का श्लोक 3

यः, माम्, अजम्, अनादिम्, च, वेत्ति, लोकमहेश्वरम्,

 

असम्मूढः, सः, मत्र्येषु, सर्वपापैः,प्रमुच्यते।।

 

अनुवाद: (यः) जो विद्वान व्यक्ति (माम्) मुझको (च) तथा (अनादिम्) सदा रहने वाले अर्थात् पुरातन (अजम्) जन्म न लेने वाले (लोक महेश्वरम्) सर्व लोकों के महान ईश्वर अर्थात् सर्वोंच्च परमेश्वर को (वेत्ति) जानता है (सः) वह (मत्र्र्येषु) शास्त्रों को सही जानने वाला अर्थात् वेदों के अनुसार ज्ञान रखने वाला (असम्मूढः) अर्थात् तत्वदर्शी विद्वान् (सर्वपापैः) सम्पूर्ण पापोंको (प्रमुच्यते) विस्तृत वर्णन के साथ कहता है अर्थात् वही सृष्टी ज्ञान व कर्मों का सही वर्णन करता है अर्थात् अज्ञान से पूर्ण रूप से मुक्त कर देता है। जिस कारण तत्वदर्शी सन्त द्वारा बताई वास्तविक साधना के आधार पर भक्ति करने वाले के सर्व पाप नष्ट हो जाते हैं।