क्या गीता ज्ञान दाता प्रभु सर्व शक्तिमान है?

प्रश्न - गीता अध्याय 15 श्लोक 18 में कहा है कि मैं लोक में, वेद में पुरुषोत्तम नाम से प्रसिद्ध हूँ। इस से तो यही सिद्ध हुआ कि गीता ज्ञान दाता प्रभु ही सर्व शक्ति मान है तथा गीता अध्याय 12 पूर्ण ही गीता ज्ञान दाता की ही महिमा कह रहा है।

 

प्रश्न – गीता अध्याय 15 श्लोक 18 में कहा है कि मैं लोक में, वेद में पुरुषोत्तम नाम से प्रसिद्ध हूँ। इस से तो यही सिद्ध हुआ कि गीता ज्ञान दाता प्रभु ही सर्व शक्ति मान है तथा गीता अध्याय 12 पूर्ण ही गीता ज्ञान दाता की ही महिमा कह रहा है।

उत्तर – गीता जी में गीता ज्ञान दाता प्रभु अपनी साधना तथा समर्थता भी कह रहा है तथा साथ-साथ उस पूर्ण परमात्मा की महिमा भी कह रहा है तथा उस परमेश्वर की साधना के लिए तत्वदर्शी संत की ओर संकेत भी कर रहा है। गीता अध्याय 12 पूरा ब्रह्म (क्षर पुरुष – काल) की महिमा से परिपूर्ण है तथा गीता अध्याय 13 सारा उस पूर्ण परमात्मा अर्थात् आदि पुरुष परमेश्वर की महिमा से परिपूर्ण है। गीता अध्याय 15 श्लोक 1 से 4 तथा 16 से 17 में पूर्ण परमात्मा तथा परब्रह्म, ब्रह्म आदि का निर्णायक ज्ञान है।

श्लोक 16 में कहा है कि पृथ्वी तत्व से निर्मित लोक (ब्रह्म के इक्कीस ब्रह्मण्ड तथा परब्रह्म के सात संख ब्रह्मण्ड पृथ्वी तत्व से बने होने के कारण एक लोक भी कहा जाता है) में दो प्रभु है। एक क्षर पुरुष अर्थात् ब्रह्म, दूसरा अक्षर पुरुष अर्थात् परब्रह्म। इन दोनों प्रभुओं के अन्तर्गत जितने भी प्राणी हैं उनका तथा इन दोनों प्रभुओं के स्थूल शरीर तो नाशवान हैं तथा जीवात्मा अविनाशी कही गई है।

श्लोक 17 में कहा है कि वास्तव में पुरुषोत्तम अर्थात् सर्व शक्तिमान परमेश्वर तो उपरोक्त दोनों से अन्य ही है, जो परमात्मा कहा जाता है। जो तीनों लोकों में प्रवेश करके सबका धारण-पोषण करता है। वह वास्तव में अविनाशी परमेश्वर कहा जाता है।

अध्याय 15 के ही श्लोक 18 में गीता ज्ञान दाता (क्षर पुरुष – ब्रह्म) अपनी स्थिति बताते हुए कह रहा है कि मुझे तो लोकवेद (दंत कथा) के आधार से पुरुषोत्तम कहते हैं, क्योंकि मैं अपने इक्कीस ब्रह्मण्डों में जितने भी प्राणी मेरे आधीन हैं, वे चाहे स्थूल शरीर में नाशवान है, चाहे आत्मा रूप में अविनाशी हैं, मैं उनसे उत्तम (श्रेष्ठ) हूँ। इसलिए मैं लोकवेद के आधार से पुरुषोत्तम प्रसिद्ध हूँ। वास्तव में पुरुषोत्तम तो कोई और ही परमेश्वर है जो गीता अध्याय 15 श्लोक 17 में कहा है।